- 8 Posts
- 5 Comments
आज आप तक एक बात और पहुँचाना चाहूंगी कि आज उत्तर-प्रदेश की राजनीति में अगर आपकी जाति ‘पावरफुल’ है तो आप पर लगे करप्शन, क्राइम के दाग भी अच्छे हैं। और समाजवादी पार्टी भी सियासत की इस जमीनी सच्चाई को बखूबी समझती है ! जहाँ तक मैं समझती हूँ कि दलितों के साथ हुई घटनाओ के लिये तथाकथित दलित नेता ही जिम्मेदार होते है जो एक बार सत्ता मे पहुंचने के बाद दलितों का हित पूरी तरह भूलकर अपनी जेबें भरने मे तल्लीन रहते है ! ये कैसा भारत देश है जहाँ एक कमजोर वर्ग को अपने ही मुल्क के अंदर अपने हक के लिए लड़ना पड़ता है ! दलितों की दुर्दशा का एक सबसे और अहम् कारण मुझे ये भी नजर आता है कि भारतीय संविधान के अनुसार दलितों को मूल अधिकारो मे से एक समानता का अधिकार आजादी के इतने सालों बाद भी नही मिला है। कभी कभी तो मुझे लगता है कि हिन्दुओ के धार्मिक नियंत्रण दलितों और आदिवासियो के हाथों मे आने चाहिए जिससे कि ब्राह्मणवादी मानसिकता के ब्राह्मणों के जुल्मों का अंत हो और सामाजिक स्तर पर दलितों को बराबरी का सम्मान मिले।
स्वंतत्र भारत में हर व्यक्ति को कानून के दायरे में अपने ढंग से जीने की स्वंतत्रता है, परन्तु वास्तविक धरातल पर आज भी दलित समुदाय पर वही पुराना दबंग वर्ग का कानून चलता है पुलिस में केस भी दर्ज होता है, कोर्ट कचहरी में भी मामले जाते हैं पर क्या न्याय मिलने तक दलित दबंगों का विरोध, मारपिटाई उनकी महिलाओं से छेड़छाड़ सह पाने लायक रह पाते हैं ? दलितों को न्याय मिलना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु त्वरित न्याय मिलना आवश्यक है क्योंकि सामाजिक संरक्षण, सरकार की तत्परता, दलित समुदाय की जागरूकता तथा ठोस एवं त्वरित कारवाई जैसे कार्यों के अधिक प्रयास करने होंगे आखिर दलित समाज का कमजोर वर्ग कब तक इन यातनाओं को झेलता रहेगा और उन्हें स्वछन्द जीवन जीने का अधिकार कब मिलेगा ?सबसे आश्चर्यजनक बात तो ये है कि इस कमजोर वर्ग के लिए अनुसूचित जाति से निर्वाचित होकर आये सांसदों के दलितों के प्रति होने वाले अत्याचारों पर मुंह बंद क्यों रहते है ?
Read Comments